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महिला सरपंच के साथ हुए जातिगत दुर्व्यवहार को लेकर अब पलारी पुलिस ने नही की कार्रवाई

आरोपी यशवंत साहू से पुलिस की मिलीभगत की आशंका

पलारी। अनुसूचित जाति वर्ग की महिला सरपंच श्रीमती प्रीता डेहरिया के साथ ग्राम पंचायत भवन लोपा में हुई जातिगत गाली-गलौच और धमकी की घटना ने पुलिस और प्रशासन की कार्यप्रणाली और निष्क्रियता को सामने ला दिया है। 22 अक्टूबर 2024 को विशेष ग्राम सभा के दौरान ग्राम के यशवंत साहू ने महिला सरपंच को सार्वजनिक रूप से अपमानित किया। इसके बावजूद पुलिस ने 23 अक्टूबर को दर्ज शिकायत पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं की है।

क्या है पूरा मामला : ग्राम पंचायत लोपा में आयोजित विशेष ग्राम सभा के दौरान आपराधिक प्रवृत्ति के यशवंत साहू ने उत्तेजित होकर सरपंच के खिलाफ जातिसूचक और आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल किया। सरपंच ने आरोप लगाया कि साहू ने न केवल गाली-गलौच की, बल्कि उन्हें जान से मारने की धमकी भी दी। बता दें कि शासन के निर्देशानुसार आयोजित इस ग्राम सभा में नोडल अधिकारी और सैकड़ों ग्रामीण उपस्थित थे। इसी दौरान यशवंत साहू ने महिला सरपंच को जातिगत, अमर्यादित और आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल करते हुए गाली-गलौच की। घटना के समय ग्रामसभा में कई ग्रामीण उपस्थित थे, जिन्होंने इस कृत्य की पुष्टि की है। यह पहली बार नहीं है जब साहू ने ऐसी हरकत की हो। इससे पहले भी ग्राम सभा में उनके इसी तरह के कृत्य की शिकायत की जा चुकी है।

शिकायत के बाद भी पलारी पुलिस ने नही की कार्यवाही

यशवंत साहू के खिलाफ जातिगत गाली-गलौच और अपमान के मामले में महिला सरपंच श्रीमती प्रीता डेहरिया द्वारा पुलिस चौकी पलारी में शिकायत दर्ज करने के बावजूद चौकी प्रभारी राजेश शर्मा द्वारा अब तक इस घटना को लेकर कोई कार्रवाई नहीं की गई है। इस निष्क्रियता ने पुलिस तंत्र की कार्यप्रणाली और निष्पक्षता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। यह पहली बार नहीं है जब शर्मा की निष्क्रियता पर सवाल उठे हैं। पूर्व में भी आदिवासी युवती से जुड़े मामले में कार्रवाई न करने के आरोप उन पर लग चुके हैं।

पुलिस की आरोपी से सांठगांठ की आशंका

पुलिस द्वारा आरोपी यशवंत साहू के खिलाफ कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई। साथ ही चौकी प्रभारी राजेश शर्मा ने शिकायत को नजरअंदाज करते हुए आरोपी के खिलाफ कार्रवाई करने से परहेज किया है। पुलिस की निष्क्रियता से यह संदेह बढ़ता है कि कहीं आरोपी के साथ सांठगांठ तो नहीं है?

पुलिस की भूमिका पर सावाल


शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं : शिकायत दर्ज होने के 20 दिन से अधिक समय बीतने के बावजूद न तो प्राथमिकी दर्ज की गई और न ही आरोपी से पूछताछ हुई।
गवाहों और सबूतों की अनदेखी : इतने सारे गवाहों की मौजूदगी और स्पष्ट आरोपों के बावजूद पुलिस का निष्क्रिय रहना, एक गंभीर सवाल खड़ा करता है।
न्याय प्रक्रिया का अवरुद्ध होना : एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम के प्रावधानों के तहत ऐसे मामलों में तुरंत कार्रवाई अनिवार्य है, लेकिन पुलिस की निष्क्रियता कानूनी प्रक्रिया का उल्लंघन करती है।

100 डायल के कर्मचारियों पर उठे सवाल

ग्राम पंचायत भवन लोपा में आयोजित विशेष ग्राम सभा के दौरान अनुसूचित जाति वर्ग की महिला सरपंच के साथ जातिगत अपमान और गाली-गलौच की घटना के दौरान तत्काल 100 डायल पर फोन कर मदद मांगी गई, लेकिन पुलिस मौके पर नहीं पहुंची। इससे पुलिस विभाग और प्रशासन की गंभीरता पर सवाल खड़े हो रहे हैं।

समाज पर प्रभाव : यह घटना केवल एक महिला या जाति विशेष का मामला नहीं है, बल्कि समाज में गहरी जड़ें जमा चुके भेदभाव और प्रशासनिक उदासीनता को दर्शाती है। ऐसे मामलों में त्वरित और निष्पक्ष कार्रवाई से ही न्याय सुनिश्चित हो सकता है।

सरकार और प्रशासन से अपेक्षा : महिला सरपंच को तत्काल न्याय और सुरक्षा प्रदान की जाए। साथ ही संबंधित पुलिसकर्मियों की लापरवाही के लिए जांच और कार्रवाई की जाए। एवं जातिगत भेदभाव रोकने के लिए सख्त दिशा-निर्देश लागू किए जाएं।
यह घटना शासन-प्रशासन के लिए एक बड़ी चुनौती है। समय पर कार्रवाई नहीं होने से समाज में न्याय व्यवस्था की साख पर बुरा असर पड़ेगा।

महिला सरपंच की गुहार : महिला सरपंच ने उच्चाधिकारियों से न्याय की गुहार लगाते हुए मांग की है कि सर्वप्रथम पुलिस द्वारा प्राथमिकी दर्ज कर दोषियों को गिरफ्तार किया जाए। साथ ही एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत सख्त कार्रवाई की जाए। एवं उन्हें सुरक्षा प्रदान की जाए। और पुलिस की निष्क्रियता की जांच हो।

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