महिला डॉक्टर का शव गद्दे पर पाया गया
गद्दे पर मिले खून के धब्बे
मृतक के मुंह और दोनों आंखों पर खून
होठ, गर्दन, पेट, बाएं टखने और दाहिने हाथ की उंगली पर पाए गए चोट के निशान
डाॅक्टर्स धरती के भगवान माने जाते हैं. जो चिकित्सक अपनी जान जोखिम में डालकर गंभीर से गंभीर बीमारियों का इलाज कर लोगों की जान बचाता है, वहीं चिकित्सक वर्ग अब अपने को असुरक्षित महसूस कर रहा हैं, जब चिकित्सक ही सुरक्षित नहीं रहेगा, तो वह सेवा कैसे करेगा। अभी हाल ही में बीते 8-9 अगस्त की दरमियानी रात कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज-अस्पताल में जूनियर डॉक्टर के साथ दरिंदगी कर उनकी हत्या कर दी गई थी। मृतक मेडिकल कॉलेज में चेस्ट मेडिसिन विभाग की स्नातकोत्तर द्वितीय वर्ष की छात्रा और प्रशिक्षु डॉक्टर थीं। इस घटना के बाद पीड़िता के परिवार से लेकर अस्पताल एवं अदालत तक कई सवाल किये जा रहे हैं।
इन दिनों देशभर में डॉक्टरों का विरोध प्रदर्शन हो रहा है। कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज-अस्पताल में जूनियर डॉक्टर के साथ दरिंदगी की घटना के बाद डॉक्टर सड़कों पर हैं। पश्चिम बंगाल समेत देशभर की तमाम अस्पतालों में स्वास्थ्य सेवाएं प्रभावित हुई हैं। उधर कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश के बाद सीबीआई मांमले की जांच में जुटी हुई है।
इस बीच आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के परिसर में हुई तोड़फोड़ और डॉक्टरों से मारपीट ने प्रदर्शनकारी डॉक्टरों का आक्रोश को बढ़ा दिया। कलकत्ता हाईकोर्ट ने इस मुद्दे का शुक्रवार को संज्ञान लिया। कोर्ट ने इस मुद्दे पर बंगाल सरकार को फटकार लगाते हुए इसे सरकारी मशीनरी की नाकामी करार दिया। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने सरकार और प्रशासन से कई सवाल भी दागे। इससे पहले इस घटना को लेकर विपक्षी दल भी राज्य सरकार पर सवाल उठा चुके हैं। घटना की शुरुआत में पीड़िता के रिश्तेदार ने अस्पताल प्रबंधन पर आरोप लगाए थे।
आइये जानते हैं कि कोलकाता के अस्पताल की घटना क्या है?
इस घटना में पीड़िता का परिवार क्या कह रहा है? अदालत ने क्या सवाल पूछे हैं? तमाम सवालों पर सरकार, पुलिस प्रशासन, और अस्पताल प्रशासन क्या जवाब दे रहा है?
कोलकाता के अस्पताल की घटना क्या है?
आरजी कर मेडिकल कॉलेज-अस्पताल में जूनियर डॉक्टर के साथ दरिंदगी की घटना 8-9 अगस्त की दरमियानी रात की है। मृतक मेडिकल कॉलेज में चेस्ट मेडिसिन विभाग की स्नातकोत्तर द्वितीय वर्ष की छात्रा और प्रशिक्षु डॉक्टर थीं। यह घटना कोलकाता शहर के लालबाजार में घटी जो एक भीड़भाड़ वाला इलाका है। स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, जूनियर डॉक्टर 8 अगस्त को अस्पताल में रात की ड्यूटी कर रही थीं। रात 12 बजे के बाद उन्होंने दोस्तों के साथ डिनर भी किया। इसके बाद से महिला डॉक्टर का कोई पता नहीं चला। 9 अगस्त की सुबह उस वक्त मेडिकल कॉलेज में हड़कंप मच गया जब चौथी मंजिल के सेमिनार हॉल से अर्ध नग्न अवस्था में डॉक्टर का शव बरामद हुआ। घटनास्थल से मृतक का मोबाइल फोन और लैपटॉप बरामद किया गया। 10 अगस्त की सुबह महिला डॉक्टर के साथ दुष्कर्म और हत्या के आरोप में संजय रॉय नाम के व्यक्ति को गिरफ्तार कर लिया गया। न्यूज एजेंसी पीटीआई ने एक अज्ञात पुलिस अधिकारी के हवाले से बताया कि गिरफ्तार व्यक्ति की गतिविधियां काफी संदिग्ध हैं और ऐसा लगता है कि वह सीधे तौर पर अपराध में शामिल है। आरोपी ब्लूटूथ हेडफोन के टूटे तार से पकड़ा गया था जो पुलिस को सेमिनार कक्ष में गिरा मिला था।
इस घटना में सवाल क्या हैं?
मानवता को शर्मसार कर देने वाली इस घटना के बाद सबसे पहला सवाल अस्पताल प्रशासन पर था। दरिंदगी की शिकार हुई डॉक्टर के परिवार के सदस्यों ने अस्पताल प्रशासन पर कई गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने हाल ही में एक यूट्यूब चैनल को दिए साक्षात्कार में कहा कि अस्पताल के अधिकारियों ने उन्हें बताया कि उनकी बेटी ने आत्महत्या कर ली है। पीड़िता के रिश्तेदारों ने आरोप लगाया कि उन्हें उसका शव देखने से पहले अस्पताल के बाहर तीन घंटे तक इंतजार करना पड़ा। हालांकि, कलकत्ता हाईकोर्ट के सामने राज्य सरकार ने कहा कि यह बात गलत है कि अभिभावकों को तीन घंटे तक इंतजार कराया गया। वहीं कोलकाता पुलिस ने भी कहा है कि उसके द्वारा परिवार को संभावित आत्महत्या के बारे में सूचित करने की रिपोर्ट झूठी है।
रिश्तेदार ने आरोप लगाते हुए कहा, ‘माता-पिता ने उनसे अपनी बेटी का चेहरा दिखाने की विनती की। लेकिन फिर भी उन्हें तीन घंटे तक इंतजार करना पड़ा। उसे केवल एक फोटो लेने दिया गया, जिसे उसने बाहर आकर हमें दिखाया। उसके शरीर पर कोई कपड़ा नहीं था। उसके पैर 90 डिग्री के अंतर पर थे। चश्मा टूटा हुआ था और उसकी आंखों में कांच के टुकड़े घुसे हुए थे। लड़की की मौत गला घोंटकर की गई थी।’सीसीटीवी की निगरानी नहीं होने पर भी सवाल उठ रहे हैं।
परिजन के घटना वाले कमरे के आसपास सीसीटीवी कैमरे की निगरानी नहीं होने का सवाल उठाया था। मृतक डॉक्टर की मां ने कहा, ‘मेरी बेटी की हत्या कर दी गई। मेरी बेटी अर्धनग्न पड़ी थी। शीशे टूटे हुए थे। उसके शरीर पर कोई कपड़ा नहीं था। अंदर कोई सीसीटीवी कैमरा नहीं था। यहां सब कुछ अस्त-व्यस्त था।’ इसी को देखते हुए भारतीय चिकित्सा संघ (एनएमसी) ने 13 अगस्त को डॉक्टर्स की सुरक्षा के लिए सभी मेडिकल कॉलेजों को एक एडवाइजरी जारी की। इसमें कहा गया कि कॉलेज और अस्पताल परिसर में फैकल्टी, मेडिकल छात्रों और रेजिडेंट डॉक्टरों सहित सभी कर्मचारियों के लिए काम का सुरक्षित माहौल हो। ओपीडी, वार्ड, कैजुअल्टी, हॉस्टल और परिसर और आवासीय क्वार्टरों में अन्य खुले क्षेत्रों में पर्याप्त सुरक्षा उपाय सुनिश्चित किए जाने चाहिए। कर्मचारियों के एक स्थान से दूसरे स्थान पर सुरक्षित रूप से चलने के लिए शाम को कॉरिडोर और परिसर में अच्छी रोशनी होनी चाहिए। इसके अलावा निगरानी के लिए सभी संवेदनशील क्षेत्रों को सीसीटीवी कैमरे लगाए जाने चाहिए।
अस्पताल प्रशासन की कार्रवाई पर भी सवाल
कलकत्ता हाईकोर्ट ने पश्चिम बंगाल पुलिस की कार्रवाई पर भी सवाल उठाए हैं। कोर्ट ने 13 अगस्त को पश्चिम बंगाल सरकार से सवाल किया था कि महिला चिकित्सक मामले में शुरुआत को ही हत्या का मुकदमा क्यों नहीं दर्ज किया गया। इसकी जांच अप्राकृतिक मौत वाले एंगल से क्यों शुरू की गई। मुख्य न्यायाधीश टीएस शिवज्ञानम ने ममता बनर्जी सरकार की तरफ से पेश वकील से यह सवाल तब पूछा, जब उन्होंने दावा किया कि अप्राकृतिक मौत का मामला दर्ज किया गया, क्योंकि हत्या की तत्काल कोई शिकायत नहीं मिली थी।
खंडपीठ ने कहा कि स्नातकोत्तर प्रशिक्षु चिकित्सक का शव सड़क किनारे नहीं मिला था। अस्पताल के अधीक्षक या प्राचार्य शिकायत दर्ज करा सकते थे। इसी दिन सुनवाई के बाद इससे पहले कोर्ट ने महिला चिकित्सक की हत्या के मामले में जांच सीबीआई को सौंपने का आदेश दिया। कोर्ट ने सेमिनार हॉल में डॉक्टर के मृत पाए जाने के बाद अस्पताल प्रशासन की कार्रवाई में गंभीर खामियों पर गौर किया था। कोर्ट ने कहा कि पीड़िता के माता-पिता चाहते हैं कि स्वतंत्र संस्था की ओर से मामले की जांच कराई जाए, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि सबूतों के साथ छेड़छाड़ न हो सके।
प्राचार्य की सक्रियता, नियुक्ति और पूछताछ को लेकर भी प्रश्न
अदालत ने मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के पूर्व प्रमुख डॉ. संदीप घोष को लेकर भी सवाल खड़े किए हैं। अदालत ने कहा कि यह निराशाजनक है कि प्राचार्य सक्रिय नहीं थे। संस्थान के प्राचार्य या तो खुद या उचित निर्देश जारी करके पुलिस में शिकायत दर्ज करा सकते थे क्योंकि मौत अस्पताल परिसर के भीतर हुई थी।
घटना के बाद प्राचार्य संदीप घोष ने कॉलेज के प्रमुख पद से इस्तीफा दे दिया था लेकिन बाद में उन्हें दूसरे सरकारी कॉलेज का प्रिंसिपल नियुक्त कर दिया गया। मुख्य न्यायाधीश ने इस पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा देने वाले प्रिंसिपल को दूसरे सरकारी कॉलेज का प्रिंसिपल नियुक्त किया जाना संदिग्ध है। न्यायालय ने संदीप घोष को आवश्यक अवकाश लेने का निर्देश दिया, अन्यथा उन्हें पद से हटाने का आदेश जारी करने की बात कही।
अदालत ने कॉलेज के पूर्व प्रमुख से सबसे पहले पूछताछ न होने पर सवाल दागे। कोर्ट ने कहा कि भले ही वह प्रशासनिक पद पर हों, लेकिन उनसे सबसे पहले पूछताछ की जानी चाहिए थी। अदालत ने राज्य सरकार के वकील से यह भी पूछा कि उसके प्रति सुरक्षात्मक रुख क्यों अपनाया जा रहा है। इसके बाद अदालत ने उनके बयान को दर्ज करने और उसे वह सब कुछ बताने की अनुमति देने का आदेश दिया जो वह जानते हैं।
डॉक्टरों और नर्सों की सुरक्षा पर सवाल
घटना के बाद 14-15 अगस्त की दरमियानी रात कुछ अज्ञात लोगों ने सरकारी आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के परिसर में घुसकर उसके कुछ हिस्सों में तोड़फोड़ की थी। प्रदर्शन के दौरान डॉक्टरों पर अचानक भीड़ ने हमला कर दिया था जिसमें कई जूनियर डॉक्टर घायल हुए थे। कोलकाता पुलिस ने शुक्रवार को कहा कि उसने आरजी कर मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में तोड़फोड़ और हिंसा के मामले में अब तक 25 लोगों को गिरफ्तार किया है।
अदालत ने शुक्रवार को इसका संज्ञान लिया। कोर्ट ने इस मुद्दे पर बंगाल सरकार को फटकार लगाते हुए इसे सरकारी मशीनरी की नाकामी करार दे दिया। हाईकोर्ट ने पूछा, ‘आप सीआरपीसी की धारा 144 कभी भी लगा देते हैं, लेकिन जब इतनी सारी चीजें अस्पताल के पास चल रही हैं तो कम से कम पूरे क्षेत्र की घेराबंदी करनी चाहिए।’ चीफ जस्टिस ने कहा कि किसी भी जगह पर 7000 लोग ऐसे ही तो चलकर नहीं आ सकते। आपको इस बारे में पता कैसे नहीं चला?’
घटनास्थल से छेड़छाड़ की अफवाह भी फैली
भाजपा ने इस बात का आरोप लगाया कि जिस जगह डॉक्टर से दुष्कर्म करके उनकी हत्या की गई, 14 अगस्त को हुए हमले के दौरान उससे छेड़छाड़ की गई है। भाजपा नेता सुवेंदु अधिकारी ने इस संबंध में केंद्रीय गृह मंत्रालय को पत्र भी लिखा था। केंद्रीय गृह सचिव को लिखे अपने पत्र में अधिकारी ने कहा कि क्राइम सीन की सुरक्षा करना और अस्पताल में काम कर रहे लोगों और इलाज करा रहे मरीजों को सुरक्षा प्रदान करना पुलिस का कर्तव्य था, लेकिन वे इसमें बुरी तरह विफल रहे। हालांकि, शुक्रवार को उच्च न्यायालय ने माना कि हमले में अपराध स्थल से कोई छेड़छाड़ नहीं हुई है। कलकत्ता पुलिस ने भी इस तरह की बातों को कोरी अफवाह बताया।